Friday, 5 July 2013

The True Face of ourselves

क्यूँ ऐसा बारम्बार हुआ एक लड़की संग बलात्कार हुआ
न्याय इन्हें न देने वाला अब बुजदिलों का दरबार हुआ
नारी को सम्मान रहित कर हर शख्स यहाँ शर्मसार हुआ

अपराध निरंतर हो जाने पर, हम चुप्पी तोड़ नहीं पाते हैं 
संग हमारे नहीं हो सकता ये, जान के चुप सो जाते हैं
कायर हैं भीरू हैं जो ऐसी निर्दयता कर के जाते हैं
मानुष नहीं कभी हो सकते जो क्रूर पाप कर पाते हैं

जीवन ऐसा जीना होगा अपराधी अब थर्रा जाएं
आँख गलत उठ जाए तो दंड उसी क्षण मिल जाए
गंदी सोच पालने वाले नवयुवक हमें स्वीकार नहीं
सही मायने में ऐसी जाति जीने की हकदार नहीं

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