Friday, 5 July 2013

Nature and Lover

बहकी बहकी सर सर करती, हवा गूंज के कहती है
तेरी महबूबा मेरे ही संग, बड़े नाज़ से रहती है
लहर लहर कर मदमस्त पवन में, जुल्फ तुम्हारी उड़ा करे
शोखियां तेरे बदन से यूँ, पात समदर्शी झड़ा करे
कजरारी आंखें घनघोर अंधेरा, पथ धूमिल मेरा हुआ यहाँ
नयन मूंद अब चिंतित चक्षू, ध्यान साधू सम धरे यहाँ
चाल तेरी से डगर डोलती, कमर में लचीली लता छुपाई है
वन उपवन शर्मिंदा सारे, कहाँ से अभिन्न सुन्दरता पाई है
जीवन भर देखूँ तुझको, मुझे कोई लोभ कोई मोह नहीं
आसक्त बनूँ मैं तू मेरी हो , फिर कोई चाह कोई टोह नहीं

अरुण

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