खाकर कसमें जब हम घर छोड़ निकलते हैं
देश को बदलने की आशा संग ले निकलते हैं
क्यूँ चुनाव आने पर सब विवेक यहाँ मर जाता है
कुछ नोट हाथ में आने से परिणाम ही फिर जाता है
कोई बिरादरी की बात करे, कोई धर्म की बात करे
कोई ताकत कोई पैसा, कोई नए लालच से घात करे
कोई वोट न देकर खुश है होता, फिर अधिकारों की बात करें
कर्तव्य को नहीं समझोगे जब तक, कैसे देश की बात करे
जीत-2 वह जीत न होकर महज एक सौदा हो जाता है
फिर सोचो कौन सौदागर चुनाव में घाटा खाने आता है
फिर वही दंगे और लूटपाट समाज के हिस्से हो जाते हैं
वही मतदाता फिर से उनपर अपना आक्रोश दिखाते हैं
फिर धरने और धरनों में लाठी, कितनी निर्भया मारी जाती है
फिर उन्हीं निस्सहाय के हाथों में, मोमबत्ती ही रह जाती है
समय पर हक का बाण हमें जब, नहीं छोड़ना आता है
फिर कैसे अपनी दुर्दशा पर, अधिकार मांगना आता है
पाल-2 कर नागों को हम, अगर भविष्य यहाँ बनाएंगे
कुछ भी ख्वाब़ न पालो मेरे भाई, निश्चय ही मर जाएंगे
अपने वोट का इस्तेमाल केवल देशहित में करें
जय हिन्द
देश को बदलने की आशा संग ले निकलते हैं
क्यूँ चुनाव आने पर सब विवेक यहाँ मर जाता है
कुछ नोट हाथ में आने से परिणाम ही फिर जाता है
कोई बिरादरी की बात करे, कोई धर्म की बात करे
कोई ताकत कोई पैसा, कोई नए लालच से घात करे
कोई वोट न देकर खुश है होता, फिर अधिकारों की बात करें
कर्तव्य को नहीं समझोगे जब तक, कैसे देश की बात करे
जीत-2 वह जीत न होकर महज एक सौदा हो जाता है
फिर सोचो कौन सौदागर चुनाव में घाटा खाने आता है
फिर वही दंगे और लूटपाट समाज के हिस्से हो जाते हैं
वही मतदाता फिर से उनपर अपना आक्रोश दिखाते हैं
फिर धरने और धरनों में लाठी, कितनी निर्भया मारी जाती है
फिर उन्हीं निस्सहाय के हाथों में, मोमबत्ती ही रह जाती है
समय पर हक का बाण हमें जब, नहीं छोड़ना आता है
फिर कैसे अपनी दुर्दशा पर, अधिकार मांगना आता है
पाल-2 कर नागों को हम, अगर भविष्य यहाँ बनाएंगे
कुछ भी ख्वाब़ न पालो मेरे भाई, निश्चय ही मर जाएंगे
अपने वोट का इस्तेमाल केवल देशहित में करें
जय हिन्द
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