खेल खेल में देख ली दुनिया, खेल बना संसार यहाँ
तू काट काट जीवन जीयेगा, तू काट आत्मा रोएगा
जितना सोचा तूने पाया, कहीं उससे ज्यादा खोएगा
राह तेरी आसान नहीं, जो राह तुझे आसान लगे
तुझे लगेगा ठगा गया तू, हर ठाठ तेरे तुझे फीके लगे
उतना जी ले जितना भाए, क्यूँ व्यर्थ पकाए जाता है
मार आत्मा अपने भीतर की, संतोष मिटाये जाता है
उतना करना जिससे तेरी, द्वार मुक्ति का खुला रहे
मरना केवल देह तक सीमित, तू संग आत्मा जीता रहे
अरुण कुमार अग्रवाल
Its so motivating...nice one,..
ReplyDeleteYes it seems motivating.
Delete"मरना केवल देह तक सीमित, तू संग आत्मा जीता रहे "
ReplyDeleteI like it.
Gajab mere kavi mahoday