काल मेरा जयमाल यहाँ, सारा नभ है चरण तले।
आना पथिक यहीं होगा ख्वाब़ चाहे अथाह पले।।
जलचर नभचर और सभी तुम मेरे अंश से बने हुए।
संसार सदा सोता है मुझसे पल न कोई टले ।।
निराकार और आधारहीन मैं, कण कण विचरता वासी हूँ ।
तेरी नौका डोली भवसागर में, साहिल पे खींच के लाता हूँ।।
अंधकार तेरे आगे, नयन तेरे अब क्षीण हुए।
कदम तेरे चोटिल चोटिल , इरादें तेरे जब पस्त हुए।।
तू याद मुझे करने लगता, अपने हाथों को जोड़ खड़े
तू मेरा ही अभिन्न रूप, क्यूँ स्वयं समक्ष निज़ पाप बड़े
विश्वास तुझे करना होगा , मैं विश्वास का एकदम भूखा हूँ ।
आसक्त प्यार का सदैव ही रहता, बिना प्यार के सूखा हूँ ।।
अरुण
आना पथिक यहीं होगा ख्वाब़ चाहे अथाह पले।।
जलचर नभचर और सभी तुम मेरे अंश से बने हुए।
संसार सदा सोता है मुझसे पल न कोई टले ।।
निराकार और आधारहीन मैं, कण कण विचरता वासी हूँ ।
तेरी नौका डोली भवसागर में, साहिल पे खींच के लाता हूँ।।
अंधकार तेरे आगे, नयन तेरे अब क्षीण हुए।
कदम तेरे चोटिल चोटिल , इरादें तेरे जब पस्त हुए।।
तू याद मुझे करने लगता, अपने हाथों को जोड़ खड़े
तू मेरा ही अभिन्न रूप, क्यूँ स्वयं समक्ष निज़ पाप बड़े
विश्वास तुझे करना होगा , मैं विश्वास का एकदम भूखा हूँ ।
आसक्त प्यार का सदैव ही रहता, बिना प्यार के सूखा हूँ ।।
अरुण
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