Monday, 19 August 2013

Means of Money


आज तो समाज की दशा बिगड़ के रह गई है
खेल में ही जिन्दगी, जिन्दगी खेल बनके रह गई है
चारों ओर शोर है, और चारों ओर चोर है
निशा व्याप्त धरा पे है, अंधेरा चहुँ ओर है


नोट में रोटी है, और नोट में ही वोट है
मानव जीवन का ये, सबसे बड़ा खोट है
घूस ही अब जान है, धन में ही अब प्राण है
कटती गर्दन नोट से, नोट देते प्राण है


फैलते और फूलते, सब धन को लेकर झूलते
हँसते और हँसाते हैं, केवल नोट को रिझाते है
मिल जाए गिरा पड़ा, उठा के फूले न समाते है
नोट की हो बारिशें और नोट में नहाते हैं


फिर खोज मानव की अभी, एक ओर लग गई
बिकता जो न था कभी, कीमत उसकी लग गई
प्यार भी बिकाऊ है, अब स्नेह न टिकाऊ है
भावना भी भीग कर, उनके हाथों ठग गई
नोट के दबाव में, ममता आज दब गई


Saturday, 3 August 2013

The Love in Life like Flower in Garden

दिल मेरा अब ये बोले, मेरा प्यार मिल गया
तुझको पाकर, मेरा ये संसार मिल गया
चाहे तू ना बताए, तेरा हर ख्याल मिल गया
जवाब तू ही है, हर सवाल मिल गया
दिल मेरा अब ये बोले, मेरा प्यार मिल गया

यूं तो तुझको देखते ही, होश मेरे उड जाते हैं
नैन तेरे को देखें नैना, नैन कहाँ थक पाते हैं
जुल्फ़ तेरी को छू कर देखूँ , हल्का-२ जान पडे
हाथ तेरे को थामूं जब-२, अवसर सा अति जान पडे
तेरे दिल की बगिया में, फूल प्यारा खिल गया

दिल मेरा अब ये बोले, मेरा प्यार मिल गया
तुझको पाकर, मेरा ये संसार मिल गया





Thursday, 11 July 2013

A Just Thought of Her

तुझे देखे हर बार हम,  हर कुछ नया सा लगता है
हर ख्वाब तुझे पाकर अब, सच्चा सा लगता है
बादल बरसें घनघोर घटा में, घर अपना कच्चा सा लगता है
भीग के मौसम में ऐसे, दिल अभी भी बच्चा सा लगता है
तुझे देखे हर बार हम,  हर कुछ नया सा लगता है


क्यारी फूलों वाली अक्सर, यहाँ पर महका करती हैं
मदमस्त चालों वालीं अक्सर, यहाँ पर बहका करती हैं
खिला ये बाग तुझसे है, जली ये आग तुझसे है
रहते अब होश तुझमें हैं, मेरा अब जोश तुझमें है
जानकर आज सब कुछ भी, कुछ शेष सा लगता है
तुझे देखे हर बार हम,  हर कुछ नया सा लगता है


पथिक ये राह है भूला, प्रकृति की गोद में झूला
मुसाफिर हर राह का अक्सर, मुझे था देख कर फूला
संग में साथ तेरा था, अरे वो ही तो हाथ मेरे था
जमाना जान लेगा अब, हरा हर बाग मेरा था
बिन तेरे देश भी मुझे, प्रदेश सा लगता है
तुझे देखे हर बार हम,  हर कुछ नया सा लगता है 


Saturday, 6 July 2013

A way to GOD (Feel the Change)

खेल खेल में देख ली दुनिया, खेल बना संसार यहाँ 
लूट के जीवन जीने वालों, क्या ले जाओगे साथ वहाँ 
तू काट काट जीवन जीयेगा, तू काट आत्मा रोएगा 
जितना सोचा तूने पाया, कहीं उससे ज्यादा खोएगा 
राह तेरी आसान नहीं, जो राह तुझे आसान लगे 
तुझे लगेगा ठगा गया तू, हर ठाठ तेरे तुझे फीके लगे 

उतना जी ले जितना भाए, क्यूँ व्यर्थ पकाए जाता है
मार आत्मा अपने भीतर की, संतोष मिटाये जाता है
उतना करना जिससे तेरी, द्वार मुक्ति का खुला रहे 
मरना केवल देह तक सीमित, तू संग आत्मा जीता रहे 


अरुण कुमार अग्रवाल  

Friday, 5 July 2013

The passion for Love

तुम हुए थे रूबरू हमसे, जमाना गुजर गया 
तुम्हारी यादों के सहारे ही, ये अफसाना बन गया
हमने नादानी में ना मिलने की, कसम क्या खाई
इस खता से तुम शमा, मैं परवाना बन गया
शायद तुम तो मुझे माफी दे भी दोगी महबूबा 
लेकिन मैं सब जान कर भी, अनजान बन गया

The Emotions in Love

ख्यालों को हालातों ने कभी पनपने न दिया
दुपट्टा उनका उनकी आँखों ने कभी सरकने न दिया
तबीयत मेरी दहल सी जाती है बस उनके आ ही जाने से
वक़्त ने इन नजरों को कभी उन पे टिकने न दिया

अरुण 

The Style of Living

अवसर जीवन को जीवंत करने का 
आज एक दंभ भर उस पर्वत को उभार दो, देर ही सही किन्तु हर संशय को दिल से निकाल दो
हो सकता है बाधा दिन भर ताकती है तुम्हें, उसी की बाँहों में झूल कर उसे सीने से निकाल दो
समय साथ सदा ही देगा अगर इरादे बुलंद हो, खुद से किए वो छल पल में बल से निकाल दो 
शांति जगत की पाने हेतु क्रिया शांत न कर देना, जीवन के हर पहलूं पे समझौते न कर देना 
किस्मत तो पाणिनी की भी साथ न थी, भाग्यविधाता बन कर खुद के खुद को तुम संवार दो
चंद मुसीबत रास्ता घेर ले हमारा रुकना न होगा , घड़ी उल्टी चले चाहे कदमों का उल्टा चलना न होगा
वो वक़्त की उल्टी घड़ियाँ घुटने टेक देंगी एक दिन, बस तुम अपने हृदय गति को अधिकाधिक परवान दो
दुश्मन ये लोग नहीं शत्रु तो सोच हमारी होती है, सफलता न मिली कारण हमारी मक्कारी होती है
हम जागते रहते है क्रियाहीन इस जहाँ में, इसलिए ही तो किस्मत हमारी सोती है
इस जंग का अंत हम विजय श्री के बिना न होने देंगे, ये पुकार आग से पूर्ण कर इस गगन मे दहाड़ दो
मित्र और संगी साथी सब दूर चले जाते हैं, अगर आप नाकामी की सीढ़ियाँ निरंतर चढ़ते जाते हैं
कोई चाह कर भी आपका विरोधी न बन पाए, ये चाह सभी कर्णों में फुँकार दो
सशक्त और सदृश्य भविष्य की कामना न करो, अपने लिए भव्य महलों का भी न आवह्न करो
ये ज़िंदगी एक जीवंत मिसाल बन जाए, अपने जीवनरथ के अश्वों को गगनचुम्बी उड़ान दो
मस्तियाँ बेवजह की इस जीवन को रास न आए, हमारी कमजोरी पे कोई भी तरस न खाए
ये चाहत ही कमजोरी में ज़ोर भर देगी, खुदा खुद नीचे आए तुम ऐसे दंब भर कर पुकार दो

रचना: अरुण कुमार अग्रवाल