आज तो समाज की दशा बिगड़ के रह गई है
खेल में ही जिन्दगी, जिन्दगी खेल बनके रह गई है
चारों ओर शोर है, और चारों ओर चोर है
निशा व्याप्त धरा पे है, अंधेरा चहुँ ओर है
नोट में रोटी है, और नोट में ही वोट है
मानव जीवन का ये, सबसे बड़ा खोट है
घूस ही अब जान है, धन में ही अब प्राण है
कटती गर्दन नोट से, नोट देते प्राण है
फैलते और फूलते, सब धन को लेकर झूलते
हँसते और हँसाते हैं, केवल नोट को रिझाते है
मिल जाए गिरा पड़ा, उठा के फूले न समाते है
नोट की हो बारिशें और नोट में नहाते हैं
फिर खोज मानव की अभी, एक ओर लग गई
बिकता जो न था कभी, कीमत उसकी लग गई
प्यार भी बिकाऊ है, अब स्नेह न टिकाऊ है
भावना भी भीग कर, उनके हाथों ठग गई
नोट के दबाव में, ममता आज दब गई
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